वर्तमान में जो प्रेम की परिभाषा,स्वरुप और संरचना है उसके परिणाम के रूप में उतावलापन ,फूहड़ता, अवसाद ,आत्महत्या जैसी विकृतियाँ पैदा हो रही है|वास्तव में प्रेम वो है जो प्रेरित करे | जिसमे अपनापन ,कनेक्टीविटी और प्रोडक्टिविटी हो ,जो हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन को उत्साह और सकारात्मक उर्जा से परिपूर्ण कर दे |प्रेम, निर्माण की प्रथम सीढ़ी है | बिना प्रेम किये पूर्णता नही आती, हम संवेदनशील नही बन पाते और हमारे भीतर सद्गुणों का विकास नही हो पाता | हमारी गुणवत्ता का विकास नही होगा |
No comments:
Post a Comment