Friday, February 3, 2012

कान्हा मेरे पीछे आओ

कान्हा मेरे पीछे आओ ,  कैसे हाथ छुडाओगे तुम 
               जब जग वाले पीड़ा देगे , तब तो पीछे आओगे तुम |
माना तुम इस जग के शिल्पी ,तुम जैसा कोई ना दूजा 
सारी दुनिया तुम्हे पूजती ,मै ना जानू तेरी पूजा |
भटक रहा हूँ भवसागर में कैसे पर लागाओगे तुम || ....कान्हा मेरे ..
अगर नही अपनाओगे तो मेरे सपने कौन बुनेगा
मेरे अंतर्मन की पीड़ा बिना तुम्हारे कौन सुनेगा |
बोलो कब निज दास बनाने वृन्दावन बुलवाओगे तुम || कान्हा मेरे .......
कान्हा जब  तुम कृपा करोगे   भवसागर से तर जाउगा 
युगल छवि का ध्यान लगाकर भक्तिभाव में भर जाउगा |
बोलो ऐ मनमोहन किस पल मुरली मधुर सुनाओगे तुम || कान्हा मेरे ....

Friday, January 20, 2012

सलमान रुश्दी का डर

२० जनवरी से शुरू हो रहे जयपुर साहित्य महोत्सव में जाने -माने अंग्रेजी उपन्यासकार सलमान रूश्दी नही आयेगे , राजस्थान सरकार के दवाव के चलते जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजकों ने रूश्दी कि प्रस्तावित भारत यात्रा रद्द कर दी है | हलाकि   सलमान रूश्दी अप्रवासी भारतीय हैं ,इस कारण वो बिना वीजा के भारत आ सकते हैं |   
    यह कोई सामान्य बात नही है  ,बल्कि अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता  के नाम पर हल्ला मचाने वाले कम्यूनिस्टों  के गाल पर जोर दार तमाचा है , और मजे की बात यह है रूश्दी के अपने देश में उनका पक्ष रखने वाला कोई नही है | गौरतलब है कि कुछ समय पहले मशहूर चित्रकार एम् .एफ . हुसैन  ने हिन्दू देवी -देवताओं की नग्न कलाकृतियाँ बनाई थी , और जब देश में उनका विरोध हो रहा था ,तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तथाकथित पैरोकारों ने गला फाड़ -फाड़ कर हंगामा मचाया था | इतना ही नही हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने उनके निधन को राष्ट्रीय छति बताई थी | 
          सलमान रूश्दी १९८९ में प्रकाशित अपने उपन्यास सैटनिक वर्सेस के कारण विवादस्पद जरूर है ,लेकिन उनको इस्लाम विरोधी कहना गलत है , फिर उनके उपन्यास को छपे कई वर्ष हो गए, और इस अवधि में वो कई  बार भारत आ चुके है , तब उनका विरोध क्यों नही किया गया ? रूश्दी ने अंग्रेजी साहित्य का भारतीयकरण किया , जिसके कारण भारतीय अंग्रेजी उपन्यास ने एक वैश्विक पहचान बनाई ऐसे में भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में इस महान लेखक का अपमान असहनीय है |

      फिर उनका विरोध कर कौन रहा है ? कुछ धार्मिक और कट्टरपंथी संगठन ,जिनको अंग्रेजी साहित्य की बिलकुल भी समझ नही   है | क्या ऐसे लोगों को साहित्य विश्लेषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा तय करने का अधिकार देना उचित होगा ?क्या भारत  के अन्दर किसे आना है और किसे नही  इसका फैसला ये कट्टरपंथी संगठन करेगे ??
    इन सबके बीच भारत सरकार का रवैय्या बहुत ही कायरतापूर्ण और निंदनीय है |  , दरअसल सरकार को लगता है कि अगर उसने 
     कट्टरपंथियों कि बात नही मानी तो उसके मुस्लिम वोट कट जाएगे | देश कि संप्रभुता कि रक्षा के लिये सरकार को इन संगठनों के खिलाफ ठोस कार्यवाही करनी चाहिए | और वाकई अगर उसे मुस्लिम वोटों कि चिंता है तो उसे एक आम मुसलमान की रोजमर्र्रा की जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए | सरकार ये सुनिश्चित  करे  कि देश के हर गरीब चाहे वह किसी भी धर्म का अनुयायी हो ,उस की जीवन कि बुनियादी जरूरत पूरी कि जा सके | 
 ये वही सरकार है जिसने कुछ समय पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ शांतिपूर्ण आन्दोलन कर रहे योग गुरु बाबा राम देव एवं उनके अनुयायियों के खिलाफ जिनमे  महिलाये व बच्चे भी शामिल थे  आधी रात लाठी चार्ज किया था | फिर ऐसा साहस इन राष्ट्र विरोधी ताकतों के सामने क्यों नही दिखाया जा सकता ?