Sunday, March 13, 2011

हाल -ए दिल

१.मुझे देखकर तुम जब यूँ मुस्कुराती हो
मै सोचता हूँ पता नही तुम मुझे देखकर मुस्कुरा रही हो
या फिर तुम्हें आदत है मुस्कुराने की,,,,,,,,,,,,
तुमसे अपना हाल - ऐ-दिल कह सके
लबो में हिम्मत कहा इतनी,
तुम्हे देखकर दिल ने सिर्फ चाहत की है,
तुम्हे पाने की................
मेरी फितरत है की मै जी भर के निहारु तुझको
पर पता नही क्यों इतनी जल्दी रहती है , तुझे घर जाने की..............
बिन तेरे अब तो अखरता है हर मंजर , हर लम्हा मुझको
इसलिए मैंने जुर्रत की है तेरी तस्वीर मेरे दिल में बसाने की....................
जब से देखा है तुझे भूल गया हूँ,,,कि मेरा भी बजूद है कुछ,,,,,,,,,
अब तो बस आदत सी हो गयी है ,खुद को भूल जाने की...............................

4 comments:

  1. it was fantastic ,,,,,,,,,,,,,, write more poem like that

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  2. pandey ji deewana kar dia aapne....write more like this really fantastic

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  3. loved the lines....

    बिन तेरे अब तो अखरता है हर मंजर , हर लम्हा मुझको
    इसलिए मैंने जुर्रत की है तेरी तस्वीर मेरे दिल में बसाने की....................
    जब से देखा है तुझे भूल गया हूँ,,,कि मेरा भी बजूद है कुछ,,,,,,,,,
    अब तो बस आदत सी हो गयी है ,खुद को भूल जाने की.......

    you amazed me by your poems and writing...good work..keep it up..

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