भिखारी बोला -
बेटे , मेरे पास तुम्हारे सारे प्रश्नों का हल है ,
सामने फुटपाथ पर एक नल है ,,
जिसमे नहाकर मै रोज़ सुबह भीख मागने जाता हूँ ,
अपनी अंतर्व्यथा संवेदन हीन समाज को सुनाता हूँ |
कभी कम भीख मिलती है ,कभी मेरे अधरों पर मुस्कान खिल जाती है ,
जिस दिन मुझे मेरे निर्वाह के लिये पर्याप्त भीख मिल जाती है ,,
और मेरा बेटा भर -पेट खाना -खाकर चैन की नीद सोता है ,
वही दिन हम भिखारियों का स्वाधीनता दिवस होता है ||||
उसकी बातों ने मुझे आज़ादी के जश्न से दूर सा कर दिया ,
पंद्रह अगस्त की समीक्षा करने पर मजबूर सा कर दिया |
लगा आजकल हर-तरफ अराजकता का शंख नाद है ,
पता नही लोगों को क्यों लगता है ,भारत आजाद है ?
गाँधी वाले युग को देखकर हमारा साहस छूटता था ,
तब कोई विदेशी आकर हमारे देश की आवरू को लूटता था |
आजकल फिर वही पुराने अंकुर फूट रहे हैं ,
आज़ादी के पहले विदेशियों ने लूटा ,और अब हमारे अपने हमारे देश को लूट रहे हैं ||